Tuesday, May 19, 2020

               झाँसी के प्रमुख दर्श्नीय  स्थल 

झांसी किला 

झांसी का किला उत्तर प्रदेश ही नहीं भारत के सबसे बेहतरीन किलों में एक है। ओरछा के राजा बीर सिंह देव ने यह किला 1613 ई. में बनवाया था। किला बंगरा नामक पहाड़ी पर बना है। किले में प्रवेश के लिए दस दरवाजे हैं। इन दरवाजों को खन्देरो, दतिया, उन्नाव, झरना, लक्ष्मी, सागर, ओरछा, सैनवर और चांद दरवाजों के नाम से जाना जाता है। किले में रानी झांसी गार्डन, शिव मंदिर और गुलाम गौस खान, मोती बाई व खुदा बक्श की मजार देखी जा सकती है। यह किला प्राचीन वैभव और पराक्रम का जीता जागता दस्तावेज है।

रानी महल 

रानी लक्ष्मीबाई के इस महल की दीवारों और छतों को अनेक रंगों और चित्रकारियों से सजाया गया है। वर्तमान में किले को संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। यहां नौवीं से बारहवीं शताब्दी की प्राचीन मूर्तियों का विस्तृत संग्रह देखा जा सकता है। महल की देखरख भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की जाती है।

झांसी संग्रहालय 

झांसी किले में स्थित यह संग्रहालय इतिहास में रूचि रखने वाले पर्यटकों का मनपसंद स्थान है। यह संग्रहालय केवल झांसी की ऐतिहासिक धरोहर को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड की झलक प्रस्तुत करता है। यहां चन्देल शासकों के जीवन से संबंधित अनेक जानकारियां हासिल की जा सकती हैं। चन्देल काल के अनेक हथियारों, मूर्तियों, वस्त्रों और तस्वीरों को यहां देखा जा सकता है।

महालक्ष्मी मंदिर 

झाँसी के राजपरिवार के सदस्य पहले श्री गणेश मंदिर जाते थे जहा पर रानी मणिकर्णिका और श्रीमंत गंगाधर राव नेवालकर की शादी हुई फिर इस महालक्ष्मी मंदिर जाते थे। 18 वीं शताब्दी में बना यह भव्य मंदिर देवी महालक्ष्मी को समर्पित है। यह मंदिर लक्ष्मी दरवाजे के निकट स्थित है।यह देवी आज भी झाँसी के लोगो की कुलदेवी है क्योंकि आदी अनादि काल से यह प्रथा रही है कि जो राज परिवार के कुलदेवी और कुलदैवत होते है वही उस नगरवासियों के कुलदैवत होते है तो झाँसी वालो के मुख्य अराध्य देव गणेशजी और आराध्य देवी महालक्ष्मी देवी है। झाँसी के राजपरिवार के ये कुल देवता है।

गंगाधर राव की छतरी 

लक्ष्मी ताल में महाराजा गंगाधर राव की समाधि स्थित है। 1853 में उनकी मृत्यु के बाद महारानी लक्ष्मीबाई ने यहां उनकी याद में यह स्मारक बनवाया।

गणेश मंदिर 

               Ganesh temple .
भगवान गणेश को समर्पित इस मंदिर में महाराज गंगाधर राव और वीरांगना लक्ष्मीबाई का विवाह हुआ था। यह भगवान गणेश का प्राचीन मंदिर है। जहा हर बुधवार को सैकड़ो भक्त दर्शन का लाभ लेते है। यहाँ पर प्रत्येक माह की गणेश चतुर्थी को प्रातः काल और सायं काल अभिषेक होता है। साधारणतः यहाँ सायं काल के अभिषेक में बहुत भीड़ होती है। ऐसी मान्यता है कि इस गणेश मूर्ति के इक्कीस दिन इक्कीस परिक्रमा लगाने से अप्रत्यक्ष लाभ होता है और मनोकामनाये पूर्ण होती है। झांसी के नजदीकी पर्यटन स्थलों में ओरछा, बरूआ सागर, शिवपुरी, दतिया, ग्वालियर, खजुराहो, महोबा, टोड़ी फतेहपुर, आदि भी दर्शनीय स्थल हैं।

निकटतम दर्शनीय स्थल 

  • सुकमा-डुकमा बाँध : बेतवा नदी पर बना हुआ यह अत्यन्त सुन्दर बाँध है। इस् बाँध कि झॉसी शहर से दूरि करीब् ४५ कि॰मी॰ है तथा यह बबीना शहर के पास है।
  • देवगढ् : झॉसी शहर से १२३ कि॰मी॰ दूर यह शहर ललितपुर के पास् है। यहां गुप्ता वंश के समय् के विश्नु एवं जैन मन्दिर देखे जा सकते हैं।
  • ओरछा : झॉसी शहर से १८ कि॰मी॰ दूर यह स्थान् अत्यन्त् सुन्दर मन्दिरो, महलों एवं किलो के लिये जाना जाता है।



  • खजुराहो : झॉसी शहर से १७८ कि॰मी॰ दूर यह स्थान् १० वी एवं १२ वी शताब्दि में चन्देला वंश के राजाऔ द्वारा बनवाये गये अपने श्रृंगारात्मक मन्दिरो के लिये प्रसिद्ध है।
  • दतिया : झॉसी शहर से २८ कि॰मी॰ दूर यह राजा बीर सिह द्वारा बनवाये गये सात मन्जिला महल एवं श्री पीतम्बरा देवी के मन्दिर के लिये प्रसिद्ध है।
  • शिवपुरी : झॉसी से १०१ कि॰मी॰ दूर यह शहर ग्वालियर के सिन्धिया राजाऔ की ग्रीष्म्कालीन राजधानी हुआ करता था। यह शहर सिन्धिया द्वारा बनवाये गये संगमरमर के स्मारक के लिये भी प्रसिद्ध है। यहां का माधव राष्ट्रिय उध्यान वन्य जीवन से परिपूर्ण है।

बरुआ सागर झील और किला के बारे में

यह जगह झाँसी से 21 किमी दूर खजुराहो मार्ग पर स्तिथ है। बरुआ सागर एक ऐतिहासिक स्थान है, यहाँ 1744 में पेशवा के सैनिकों और बुंदेलों के बीच युद्ध लडा गया था। यहाँ महाराजा महादजी सिंधिया के बड़े भाई जोती भाऊ को मार दिया गया था। इस जगह का नाम एक विशाल झील बरुआ सागर ताल के नाम पर है जो ओरछा के राजा उदित सिंह द्वारा नदी पर बाँध बनाये जाने के दौरान लगभग 260 साल पहले बन गया था । बाँध की संरचना वास्तुकला और अभियांत्रिकी का एक अनूठा उदाहरण है। उनके द्वारा बनाया गया एक पुराना किला ऊँचाई पर सुंदरता से स्थित है जहाँ से किला झील और आसपास के परिदृश्य का एक उत्कृष्ट नज़ारा प्रस्तुत होता है। झील के उत्तर-पूर्वी हिस्से में ग्रेनाइट से बने दो पुराने चंदेल मंदिरों के खंडहर हैं, इनमें से पुराने का नाम घुघुआ को मठ है।

कालपी के बारे में

यह जगह झाँसी से 142 किमी दूर जालौन जिले में है। कालपी का नाम 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के साथ जुड़ा हुआ है। इस स्थान में मंत्रणा कक्ष, व्यास टीला मंदिर, नया व्यास मंदिर और लंका मीनार जैसे कुछ प्रसिद्ध आकर्षक जगह हैं।

समथर किला के बारे में

समथर झाँसी से 70 किमी. दूर और मोंठ तहसील से 13 किमी. दूर स्थित रियासत है। यह स्थान पूर्व में "समशेरगढ़" के नाम से जाना जाता था, अब इसे "समथर" कहा जाता है। यह जगह 17वीं और 18वीं सदी के महान गुर्जर योद्धाओं की स्वतंत्र रियासत थी। दतिया राज्य के राज्यपाल चंद्रभान बार गुजर, उनके पोते मदन सिंह को समथर किले के स्वतंत्र राज्य के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। किले के अंदर प्रदर्शित ग्लाइडेड (सरकने वाली) पालकियाँ यहाँ का एक प्रमुख आकर्षण है। यहां जूदेववंशी राजा आज भी मौजूद है।  

तालबेहट और माताटीला के बारे में

तालबेहट की मानसरोवर झील झाँसी-ललितपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर झाँसी से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित है। झील के किनारे पर राजा मर्दन सिंह का किला और हजारिया महादेव मंदिर है। बेतवा नदी पर बना माताटीला जलाशय यहाँ से 10 किमी दूर है और परिवार के पिकनिक के लिए एक आदर्श स्थान है। मंदिर के निकट नौका विहार और मनोरंजन के लिए जगह है

गढमऊ झील के बारे में

गढमऊ झील एक 14 किमी लंबी झील है, यह झाँसी से 12 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 25 पर है। झील के चारों तरफ स्थित छोटी-छोटी पहाड़ियाँ इसे एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल बनाती है। यहाँ शानदार सूर्योदय और सूर्यास्त भी देखा जा सकता है ।

सुकवा ढुकवा झरना/बाँध के बारे में

यह झरना झाँसी से 39 किमी दूर है। सकवा धुकवा का झरना 1909 में बेतवा नदी पर बना था। बरसात के मौसम में 1 किमी. चौडे झरने का अद्भुत नजारा देख सकते हैं। इस जगह पर झरने के पीछे बेतवा नदी के नीचे एक सुरंग है

केदारेश्वर (मऊरानीपुर) के बारे में

यह एक पहाड़ी पर स्थित झाँसी से 70 किमी.दूर है । यहाँ  पत्थर की 600 सीढियाँ हैं जो पहाड़ी के ऊपर स्थित मंदिर तक पहुँचती हैं। इस स्थान पर भगवान शिव के नंदी वृषभ की पीठ पर  शिव लिंग स्थित है।

टोड़ी-फतेहपुर किला के बारे में

झांसी से 12 कि.मी. दूर स्तिथ 5 एकड़ क्षेत्र में फैला यह किला लगभग खंडहर है। यह किला एक पहाड़ी पर बनाया गया है और तीन बडी पत्थर की दीवारों से घिरा है। यह स्थान 4 मुख्य भागों में विभाजित है, सबसे पुराना और सबसे ऊपरी "गुसैनमहल", दूसरा "रनिवास", तीसरा "राजगढ़ महल" और चौथा" रंगमहल पैलेस" है। रंगमहल पैलेस दीवारों और छतों पर पेंटिंग के साथ सुशोभित एक शानदार चार मंजिला इमारत है।

गौतम जी ( अरुण गौतम जी )

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